हनुमान जी, हनुमान, सिया राम हनुमान, रामायण, रामकथा, वाल्मीकि रामायण, हनुमान रामायण, जय श्री राम, पहली रामायण किसने लिखी थी, पहली रामायण किसने लिखी,

हनुमान जी ने भी लिखी थी रामायण 

जय श्री राम! जय सिया राम! क्या आप जानते हैं कि हनुमान जी ने भी रामकथा लिखी थी। क्या आप जानते हैं कि वो रामकथा हनुमान जी ने अपने नाखूनों से लिखी थी। किंतु वो रामकथा अब कहां है उस रामकथा का क्या हुआ? उस रामकथा को जब वाल्मीकि जी ने देखा तो उन्होंने कहा कि हनुमान जी ने जो रामकथा लिखी है वो सर्वश्रेष्ठ है। क्या उस रामकथा के कुछ अवशेष कहीं बचे हैं? इसी विषय में हम आपको बताने वाले हैं। 

भगवान श्री राम जी के परम भक्त हैं हनुमान जी 

हनुमान जी भगवान श्री राम जी के परम भक्त हैं। केवल इतना ही नहीं, अपितु ऐसा विश्वास है कि अब तक संसार में जितने भी भक्त हुए हैं, श्री हनुमान जी उनमें सर्वश्रेष्ठ हैं। ऐसे सर्वश्रेष्ठ भक्त ने जब भक्ति और प्रेम में डूब कर कुछ लिखा होगा तो वो कैसा होगा। इसका तो हम अनुमान भी नहीं लगा सकते। हनुमान जी से जुड़ी ऐसी ही एक सुन्दर घटना के विषय में आज हम आपको बताने वाले हैं। 

हनुमान जी की इस कथा का स्वाद कैसा है 

हनुमान जी की इस कथा की मिठास चखकर हमें भी बताइएगा कि आपको यह कथा कैसी लगी। भक्तो ये घटना तब की है जब श्री राम जी के लंका युद्ध जीतने के बाद राम जी, माता सीता और लक्ष्मण सहित सभी लोग अयोध्या आ गए। भगवान श्री राम जी का राजतिलक हुआ। राजतिलक के पश्चात उत्सव का आयोजन हुआ। सभी प्रसन्नतापूर्वक उसमें शामिल हुए। 

राम जी के राजतिलक के बाद कहाँ चले गए थे हनुमान जी 

भगवान श्री राम जी का राजतिलक के पश्चात कुछ समय तक हनुमान जी राम जी के साथ रहे। किन्तु कुछ समां बाद वे हिमालय पर्वत पर चले गए। हनुमान जी अयोध्या से दूर हिमालय पर्वत पर तो थे किंतु श्री सीताराम जी उनके मन से कभी दूर नहीं रहे। हनुमान जी वहां भी हमेशा राम नाम जपते रहते थे। अब हनुमान जी श्री राम भक्ति में इतने लीन हो गए कि उनके प्रेम और भक्ति में डूब कर उन्होंने पत्थरों पर अपने नाखूनों से रामकथा उकेर दी। अर्थात पत्थरों पर अपने नाखूनों से राम कथा लिख दी। 

वाल्मीकि जी भी लिख रहे थे रामायण 

अब दूसरी ओर वाल्मीकि जी भी अपने आश्रम में रामायण लिख रहे थे। जब उन्होंने अपनी रामायण रचना पूर्ण कर ली तो उनके मन में ये आया कि अब इस रामायण को मैं किसे सुनाऊं। कौन है जिसे सबसे पहले इस रामायण को पढ़ाना या सुनाना उचित रहेगा। ऐसे में उनके ध्यान में श्री हनुमान जी का नाम आया। तब उन्हें अनुभव हुआ कि इस रामायण को पढ़ाने के लिए भगवान श्री राम जी के परम भक्त हनुमान जी ही सर्वोत्तम हैं। 

किस की रामकथा सर्वोत्तम 

ऐसा विचार करके वाल्मीकि जी अपनी रचित रामायण लेकर हनुमान जी के पास हिमालय पर पहुंचे। तो यहाँ आकर वे क्या देखते हैं कि हनुमान जी श्री राम जी के प्रेम और भक्ति में विभोर होकर शिलाओं पर रामकथा उकेर रहे हैं। जब वाल्मीकि जी ने उनकी लिखी रामकथा देखी तो अनायास ही उनके मुख से निकला। ये तो सर्वोत्तम है। अब मेरी लिखी रामायण भला कौन पढ़ेगा। हनुमान जी ने जब वाल्मीकि जी के मुख से ऐसे वचन सुने तो वे वहीँ रुक गए। अपनी लिखी कृति पर हनुमान जी को लेश मात्र भी अहंकार नहीं था। वे वाल्मीकि जी से बोले, “हे मुनिश्रेष्ठ, हे ऋषिवर आज से आपकी लिखी हुई ही रामायण पढ़ी जाएगी।” ऐसा कहकर उन्होंने वो सभी शिलायें उठा उठा कर समुद्र में फेंकनी आरम्भ कर दी। जिन पर हनुमान जी ने रामकथा लिखी थी। इस प्रकार वाल्मीकि जी द्वारा रचित रामायण जन जन तक पहुंची। 

आज कहाँ हैं रामकथा वाली शिलायें 

ऐसा माना जाता है कि ऋषि वाल्मीकि जी ने हनुमान जी को शिलायें फेंकने से रोक दिया था। जिस कारण कुछ शिलायें आज भी विद्यमान हैं। इस विषय में कोई जानकारी नहीं मिलती कि वे शिलायें आज कहाँ हैं जिन पर हनुमान जी ने रामकथा लिखी थी। 

जय सिया राम हनुमान।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here